Friday 26 August 2011

कुछ टूटी फूटी नज्में ...(part 2)

१)लाख मिन्नतों के बाद भी रिसता जो आँखों से ,
वो अश्क नहीं बेवजूद पानी होता ,
गर नुमायाँ हो जाता दर्द यों ही,
तो हमारा मुस्कराना बेमानी होता .

२)हर हाल में अब मुस्कराना सीख लिया है,
हमने आँखों की कोरों में आंसू छिपाना सीख लिया है,
दुनिया कहती है जिन्हें घूम के आंसू ,
उनको हमने हंस कर ख़ुशी की बोंडे बताना सीख लिया है..

३)खुदा ने जब बख्शी थी नेमत-ए- ज़िन्दगी,
हम बेकदर बेपरवाह हो चले थे,
एहसास जब तक होता बन्दे को ,
खुदा खुद सामने खड़ा था ..

४) दर्द की क्या बिसात जो निकल जाये हसे आगे ,
और नासमझ हैं वो लोग जो कहता हैं ,
वक्त्गी के साथ पीछे छूट जायेगा दर्द.
कोई बताये उन बन्दों को,
हम तो वो लहू हैं जो दर्द की रगों में बहते हैं ,,

५)मुसीबतों ने आकर पूछा इक रोज़,
क्या औकात है तेरी ,
जो बार बार हमसे टकराता है,
हम क्या जवाब देते , बस इतना कह पाए,
मैं तो इक अदना सा इन्सान हूँ,
और हमारा तो सदियों पुराना  नाता है ,

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