Friday 26 August 2011

ye zindagi bhi ..


उठ गया है भरोसा शफक के रंगों से अब
के अब आब हो चली है ज़िन्दगी भी ,
नशा दर्द का है कि उतरता ही नहीं कम्बखत ,
के अब शराब हो चली है ज़िन्दगी भी ..

हर रोज़ सोचता हूँ छोड़ दूंगा आज,
लेकिन आदत है जो छूटती ही नहीं ,,
के बड़ी ख़राब हो चली है ज़िन्दगी भी

आगे जाऊं या पीछे ,धीमे या तेज़ चलू
मुहाने पर जाकर रुकना ही है
समंदर में जा कर गिरना ही है
के अब दोआब हो चली है ज़िन्दगी भी

चाहता हूँ के अब ख़त्म हो, तब खत्म हो,
सूद ब्याज कि तरह बढती ही जाती है लेकिन,
लगता है पुराना क़र्ज़ चुकाना है कोई ,
और मैं कोई कर्ज़दार..
के अब महाजन का हिसाब हो चली है ज़िन्दगी भी

किसी कोने में पड़ी सी लगती है,
जिस पर बरसो से धूल जमी हो ,
किसी के आने का इंतज़ार है अब
जी करता है कोई आ कर पढ़े
वो बेरंग किताब हो चली है ज़िन्दगी भी..

जिस से आँखें चुराते रहे उम्र भर
जुर्रत ना हुयी नज़रें उठाने कि जिसके सामने
के अब वो रुआब हो चली है ज़िन्दगी भी..
उठ गया है भरोसा शफक के रंगों से अब
के अब आब हो चली है ज़िन्दगी भी ,

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