Wednesday 30 January 2013

ईमान ...

किस ईमान की बात करता है खुदा तू ? मेरे ईमान को तो कुत्ते नोच के खा गए है, जिस्म से खून चाट गयीं हैं बिल्लियाँ , और हड्डियों में बेईमानी के दीमक समा गए है कुफ्र और काफ़िर सुन कर हंसी आती है बहुत, गोया सब हज कर के वापस आ गए हैं , उसूलों की तो तुम बात भी मत करना , वो नाराज़ हो मुझसे, लौट वापस अपने जहां गए हैं एक हाथ उठा नहीं किसी की मदद को , वो तालियाँ बजाने वाले हाथ कहाँ गए हैं, उनकी आँखों का पानी नहीं सिर्फ रंग बचा है , और अब वो अपनी तबियत की खैर मनाने काबा गए हैं, नहीं हैं अब मुझमें जज्बातों की खुशबू, एहसासात मेरे कौन जाने , कहाँ गए हैं ... औकात फिर भी मेरी कुछ नहीं उन जमातों के आगे , ज़मीन क्या जो आसमान भी घर में सजा गए हैं,...