Wednesday 6 March 2013

आखों का कोरापन

लोग कहते हैं ..ये एहसास कातिल हो सकते हैं,  शायद सच है। लेकिन  सुना था सच तो कुछ भी नहीं होता , जो शायद मेरे लिए सच है, वो मेरे सबसे बड़े शत्रु के लिए भी हो सकता है , और मेरे सबसे करीबी के लिए झूठ। भावनाएं भी सापेक्षिक होती है ... समय के सापेक्ष , अवसर के अनुकूल ...सांसारिक मोह माया समझ नहीं आती सिवाय इसके की "तुम" झूठ थे .. कुछ भी सच नहीं होता।


अक्सर कहा करता था वो मुझसे ,
वो उससे मेरी वफ़ा,
और ज़माने से मेरी बेवफाई पर मरता है,
पर मेरी आँखें कहती थीं,
कोई उससे बेइन्तेहां मुहब्बत करता है,
पर ज़िक्र हमेशा रहता था,
उसकी बातों  में मेरी सच्चाई का,
कहता था , तुम अच्छे हो,
सारे जहां से अलग हो, के तुम सच्चे हो,
पर कैसे समझाऊँ उसको,
सच्चाई, वफ़ा, इमानदारी, सब कोरी बातें हैं,
सब कुछ सापेक्ष होता है,
क्या बताऊँ जिस सच्चाई के तुम कायल हो,
उसने मुझे कितनी बार ठगा,
जिस वफ़ा को तुम मेरी खूबी कहते हो,
उसने छोड़ा न किसी को सगा ,
सबको सच दिखाया, पर खुद से कहा झूठ,
कितनी ही बार ऐसा हुआ,
खुद से हुए हम खफा, खद से गए रूठ,
इसीलिए कहा करते हैं हम,
ईमान, धरम, सच, वफ़ा और करम,
सिर्फ है धोखा,आँखों का वहम,
और आखिरकार धीरे धीरे ओढ़ लिया हमने ,
आखों का वो कोरापन ...
अब न आँखें बोलती हैं ,
न तुम सुनने को मौजूद होते हो पास में ,
सिर्फ एक कोरापन है,
आँखों में, एहसास में ...  

                                                      

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